पहली बारिश और बूंदे...


उसे बारिश काफ़ी पसंद थी और मुझे? बिल्कुल भी नहीं।

"पहली बारिश में भीगने का मज़ा ही कुछ और होता है!"

"अरे एक बार भीग कर तो देखो, गर्मियों की सारी तपन ऐसे चुटकी में गायब हो जाएगी।"


एक ना एक ऐसे सौ बहानों से वो मुझसे बारिश की तारीफे करती; मगर मुझे कभी बारिश ज्यादा पसंद नहीं आयी।


मुझे तो बारिश के बारे में गिनी - चुनी बातें पसंद है -
मिट्टी की सौंधी सी महक,
हल्की सी ठंड,
गर्मागर्म कॉफ़ी/चाय,
पकौड़े,
खिड़की के बगलवाला कोना,
पीछे चलता धीमा संगीत,
और एक किताब।


मुझे कभी बारिश पसंद नहीं आती इसका एक कारण कीचड़ तो है ही, साथ ही हर जगह अनचाहे मजनुओं की तरह मंडराते किट - पतंगें, जमीन से निकालनेवाले कीड़े, केंचुए भी।


उसने कई बार मिन्नतें की, मनाने की कोशिशें  की, की मै एक बार; सिर्फ एक बार उसके साथ बारिश में भीगू, नाचू, गाऊ; पर मेरी ज़िद के आगे उसकी चाहते फीकी पड़ गई। आखिर तक मैं अपने कमरे से बाहर नहीं आयी, और वो मुझे छोड़कर चली गई; अकेली, बारिश में भीगने...


२ साल बाद, दो बारिशों में भीगने के बाद भी उसकी याद नहीं गई। अब भी ये मलाल होता है कि क्या फ़र्क पड़ जाता अगर मैं एक बार अपने पैर कीचड़ में गंदे करती? अपनी प्रिय सहेली के लिए, जो अभी उसके परमप्रिय व्यक्ति के पास चली गई है, मुझे छोड़कर, हमेशा के लिए।


आज भी बारिश हुई; और मैंने उन कृष्णमेघों को निहारा, तो लगा कि मानो वह खुद भीगी पलकों से मेरी ओर देख रही हैं, अपने आसुओं से नहला कर मेरे मलाल का रंग फ़िका कर रही है।



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